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मानसरोवर--मुंशी प्रेमचंद जी


शांति-1 मुंशी प्रेम चंद

इस अवसर पर मुझे यह बहुमूल्‍य अनुभव हुआ कि जो लोग सेवा भाव रखते हैं और जो स्‍वार्थ-सिद्धि को जीवन का लक्ष्‍य नहीं बनाते, उनके परिवार को आड़ देनेवालों की कमी नहीं रहती। यह कोई नियम नहीं है, क्‍योंकि मैंने ऐसे लोगों को भी देखा है, जिन्‍होंने जीवन में बहुतों के साथ अच्‍छे सलूक किए; पर उनके पीछे उनके बाल-बच्‍चे की किसी ने बात तक न पूछी। लेकिन चाहे कुछ हो, देवनाथ के मित्रों ने प्रशंसनीय औदार्य से काम लिया और गोपा के निर्वाह के लिए स्‍थाई धन जमा करने का प्रस्‍ताव किया। दो-एक सज्‍जन जो रंडुवे थे, उससे विवाह करने को तैयार थे, किंतु गोपा ने भी उसी स्‍वा‍भिमान का परिचय दिया, जो महारी देवियों का जौहर है और इस प्रस्ताव को अस्‍वीकार कर दिया। मकान बहुत बडा था। उसका एक भाग किराए पर उठा दिया। इस तरह उसको 50 रू महावार मिलने लगे। वह इतने में ही अपना निर्वाह कर लेगी। जो कुछ खर्च था, वह सुन्‍नी की जात से था। गोपा के लिए तो जीवन में अब कोई अनुराग ही न था।

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